पारम्परिक देवी-देवताओं के लोकगीत

गीत सतियां का

बडे़ ए बगड़ सै रानी निसरी,
सिर गड़वा जल नीर, धन रानी सकलै मासती,
गड़वा री छिटका भूँ पड़ा,
धरती न लिया ऐ सिलाए धन रानी सकलै मासती।
बड़े ए बगड़ सै रानी निसरी, सिर गोबर की हेल
गोबर छिटक्या भूँ पड़ा,
धरती न लिया ए लीपाण धन रानी सकलै मासती
बड़े ए बगड़ सै रानी निसरी, भर गेहुआँ का छाज,
छाज जो छिटका भूँ पड़ा,
धरती न लिया रे बिजान, धन रानी सकलै मासती
बड़े ए बगड़ सै रानी निसरी, भर मोतियाँ का थाल
थाल ज छिटक्या भू पड़ा,
धरती में जगमग होय, धन रानी सकलै मासती।
थारी म्हारी सती रानी चून्दड़ी, ओढागे बार त्यौहार
थारा म्हारा सती रानी चुड़ला,
पहरागे बार त्यौहार, धन रानी सकलै मासती
इन री गावां कै गोरवै लम्बी बदी ए खजूर
जहें चढ़ सती रानी देखती,
सुरग नेड़ घर दूर, धन रानी सकलै मासती।
सासु रांघ्या खिचड़ा-माए जिन्दवारां भात
ना भावै थारा खिचड़ा ना भावै जिन्दवारां भात,
भावै म्हानै राजीड़ा साथ, धन रानी सकैल मासती।
माँ ए कहवै बेटी, सासरै, सास कहैव बहु पिहर
ना पिहर ना सासरैं, गई ए बालम के साथ, धन रानी सकलै मासती।
मेरा रे भाई डोलिया गहरा ए ढोल बजाए,
पीहर सुने सासरै और ननसाल
हमारे पितरो की रंग दो पागड़ी,
हमारे सतियां का दखन चिरं, धन रानी सकलै मासती।
म्हारे बेटा की राखो बिनती, म्हारी बहुआ का सर्व सुहाग
म्हारे लाड़ जमाई पावना, म्हारी धीयो का आवन जान,
धन रानी सकलै मासती।
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