पारम्परिक देवी-देवताओं के लोकगीत

गीत रतिजगा की लीला

गीत
एक गज कोरा कपड़ा ए खतरी की,
ले लीलगर पै जाय मेरा लीला रंग दे।
तेरा तो लीला जद रंगु ए खतरी की,
आज रहवै सारी रात मेरा लीला रंग दे।
थारी तो हाट-बजारां ओ लीलगर का,
लख आवै लख जाये मेरा लीला रंग दे
कोठै कै बीच कोठड़ी ए खतरी की,
उठै ए बिछाओ सेज मेरा लीला रंग दे।
एकै दुपट्टै की ओट सोय गये,
पौहचै से पकड़ा है हाथ मेरा लीला रंग दे।
रात गई उगा प्रभात, किस बीध जाऊं घर आज, मेरा लीला रंग दे।
सिर पर साफा पहर लो ए खतरी की,
कर मर्दाना भेस, मेरा लीला रंग दे।
आगे सी गई देवर मिल गया,
भाभी कहां ए गुमाई सारी रात मेरा लीला रंग दे।
जेठ मेरै कै रतिजगा ओ देवर मेरा,
उठै ए गुमाई सारी रात मेरा लीला रंग दे।
ना थारै हाथ मेहँदी ए भाभी मेरी,
ना थारै नैना में नींद मेरा लीला रंग दे।
धोये उतारी मेहँदी ओ देवर मेरा,
सोये उतारी नींद मेरा लीला रंग दे।
जहाँ गई वहीं चली जा ए भाभी मेरी,
म्हारै बीर कै रहेगी नाऐ मेरी लीला रंग दे।
छोरियाँ मैं की बीगडी ए भाभी मेरी,
कदेये ना अपनी होये मेरा लीला रंग दे।
छोर्यां मैं का बिगड़ा रे देवर मेरा, कद ए ना अपना होय मेरा लीला रंग दे।
तैं तो खाई काकड़ी रे देवर मेरा, मैं खाया तरबूज मेरा लीला रंग दे।
तैं तो मोही जाटनी रे देवर मेरा, मैं मोह्या राजपूत मेरा लीला रंग दे।
थारै तो जनमी छोरी रे देवर मेरा, मैं जनम्या राजपूत मेरा लीला रंग दे।
थारी तो मरिया छोरी ओ देवर मेरा,
म्हारै तो खेलें नन्दलाल मेरा लीला रंग दे।
खेत कमावे जाटनी, हाट कमावे राजपूत, मेरा लीला रंग दे।
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