पारम्परिक देवी-देवताओं के लोकगीत

दीवा का गीत

दीवला
लाला किसने बीमाणे दिऐ तुम घड़े, किसने खैंची है गड़बात।
लाला कुम्हरा नीमाणे दिऐ तुम घड़े, सुनरा नै खैंची है गड़बात।
राजमहल दीवला जुडै।
मैं तो जोड धरूंगी घुड़सार में जहां बंध रही है घोड़ां की लार।
मैं तो जोड़ धरूंगी चत्तर सार मैं, जहां बैठे हों मेरे देवर जेठ
राजमहल दीवला जुडै।
मैं तो जोड़ धरूंगी राम रसोई में जहां जीमै हों मेरे देवर जेठ
मैं तो जोड़ धरूंगी सुख सेज पै जहां सोवे हो पातरिया छैल
राजमहल दीवला जुडै।
राजा बाती समारन मैं गई कोई पकड़ी है पातरिया नै बांह
राजा के तुम नींद उनींद में, के कुछ पिछली परीत
राजमहल दीवला जुडै।
गोरी ना कुछ नींद-उनींद में, ना कुछ पिछली परीत
गोरी पतली सी बिटिया जाट की, कोई उस में हो मेरे फंसे प्राण
राजमहल दीवला जुडै।
मैं तो जाय कहूंगी अपने बाप से मारै ओ हुक्का की मार
मैं तो जाय कहूंगी अपनी मां से मारै ओ चरखा की मार
राजमहल दीवला जुडै।
मैं तो जाय कहूंगी अपनी बीर सै मारै ओ बल्ला की मार
मैं तों जाय कहूंगी अपनी भाभी सै मारै ओ बेलन की मार
राजमहल दीवला जुडै।
गोरी जा दिन बाप कहां गयो जा दिन मां कहां गयी परखै ओ दीया की लौ
जा दिन भाभी कहां गयी लाई ओ चपटा सो पेट
राजमहल दीवला जुडै।
राजा पेट छटो पटली हुओ बोले ओ डबका से बोल
राजमहल दीवला जुडै।
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गीत दिवाका -1
कहां से आया गडरिया गडरिया, कहां से आया रै लुहार
म्हारी ऊंची डांडी का दिवला
म्हारे चैडे़ झाबे का दिवला जी
कै मण गाल्या लोहा, कै मण गाल्या लाल लुहारी कोयला जी
म्हारी ऊंची डांडी का दिवला जी
नौ मण गाल्या कोयला जी, दस मण गाल्या लोहा
म्हारै सरसै डांडी का दिवला जी
हमारै चैडे झाबै का दिवला, म्हारी ऊॅची डांडी का दिवला जी
क्याऐ की बाती परोई जी, क्याऐ का घाल्या धीरत
म्हारी ऊंची डांडी का दिवला जी
म्हारै चैड़े झाबे का दिवला, म्हारे सरसै डांडी का दिवला जी
गड रूई निर्मल की घाली बाती, सुरयल का धीरत पिरोया जी
चास घरूगी स्यामी सालै मै, पिछैल पछेली चानणा जी
म्हारी ऊंची डांडी का दिवला, म्हारे सरसै डांडी का दिवला
चास धँरूगी घर के बाहर - म्हारे पित्तरां के घर चानणा जी
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