लड़के या लड़की का जन्म (सभी के हिसाब से है)
जब हस्पताल से आये उसी दिन छठी पूजते हैं। छठी वाले दिन जच्चा नहाने के बाद कुछ नहीं खाती। मूंग की दाल अौर षमा के चावल बनते हैं। एक सराई या दीवार पर चिपकाते हैं, गोबर की गौर बनाकर लाल कपडे़ में लपेट कर रखते हैं। रोली की बिंदी लगाते हैं। तेल का दीया जलाकर रखते हैं फिर छलनी ढकते हैं।
ताकि बच्चे को नजर ना पडे अौर काजल बुआ लगाती हैं। एक लोटा पानी का छींटे मारने के लिए। गंगाजल में हल्दी डालकर बच्चे के नाखूनो पर लगाते हैं। कलावा व पैसे से सास-बहू या जच्चा-बच्चा पूजते हैं। पूजा का सामान गाय को खिला दें। लड़का होने के बाद पांच या सात सतिये रखते हैं या रोली के थापे लगते हैं। सफेद रूमाल पर लाल, पीली, हरी अौर काली बिंदी लगाते हैं। रूमाल को जच्चा के कमरे के गेट पर उल्टा लटकाते हैं। ये नेग सास करती है इसे चरवा बोलते हैं। छठी के लिए जच्चा को देवर पल्ला पकड़कर लाता है। छठी वाले दिन बच्चे को तगड़ी, पोची, चन्दा, सूरज गले में डालते है। छठी वाले दिन बच्चे के कपड़े और तौलिये ये सब बुआ के होते हैं।
पांच नहान करने होते हैं। एक छठी के दिन, दूसरा हवन के दिन, तीसरा अौर चौथा अच्छा दिन देखकर करते हैं। पांचवां कुएं वाले दिन सवा महीने पर होता है।
बीस पूड़ी बनाकर चार-चार पांच जगह रखकर उनमें रुपये, बूरा रखकर मिनसते हैं। हवन से उठने के बाद जच्चा से मिनसवाते हैं। कई जगह हवन वाले दिन देवर पल्ला पकड़कर लाता है। जच्चा की गोद में चार पूड़ी या चार लड्डू रखते हैं। उन लड्डूअो को जच्चा ही खाती है। बीस पूड़ी कुम्हारी को जाती है। हवन के बाद सवा किलो षक्कर और कुछ पैसे रखकर मिनसते हैं।
एक लोटे में पानी लेते हैं। लोटा बजाकर पैसो को पानी में डालते हैं। (आतक-बातक सोने का सिक्का, बूढ़ा-बाबा तुम्हारा पैसा) सभी सुहागन अौरतें जिनका बूढ़ा-बाबा पूजता है पूज लें। जच्चा के लिए रात को काजल पाड़ते हैं उसे जच्चा अौर बच्चे को बुआ लगाती हैं।
कुआँ पूजने के लिए हल्दी के पीले किए चावल दो लोटे दोगड़ के लिए या गंगा सागर पाँच सतिए बनाया हुआ सफेद तौलिया या एक नया रूमाल। तौलिया बहू के सिर पर दोगड़ के नीचे रखते हैं। थोड़ा-सा बाजरा रूमाल में बाँधकर बहू की साड़ी पर टाँगते हैं। पीहर से लाया हुआ पीलिया उढ़ाते हैं। कई जगह सवा दो मीटर सफेन चिकन का कपड़ा उढ़ाते हैं।
कुएँ पर जा कर पानी खींच कर लोटे भरते हैं। फिर थोड़ी-सी जगह साफ कर हल्दी से पाँच सतिया बनाते हैं। इन सतियों पर पीले चावल की पाँच ढेरी बना कर रुपये रखते हैं। जच्चा को भी हल्दी की टिकी लगाते हैं। कुएँ के आगे हाथ जोड़ते हैं। फिर इस सामान को कुएँ में डालते हैं। जच्चा से दूध की धार लगवाते हैं। जच्चा सात लडकों को थोड़ा-थोड़ा गुड़ बाजरा देती हैं। घर आने पर लड़कियों को बाहर रुकाई का नेग देते हैं फिर घर के बाहर दोनों तरफ सतिया बना कर चावल चढ़ा कर जच्चा घर में आती है। दोगड़ रसोई में रखती है। बहू का मुँह जूठा करवाते हैं। इसके बाद अच्छा वार देख कर बहू से रसोई में कुछ बनवाते हैं। फिर बहू मंदिर और मायके हो आती है। 2.3 बार गीत भी गवाये जाते हैं।
परोजन किसी-किसी के होते हैं सबके नहीं होते। बच्चा 2ए 5ए 7ए 9ए 11 वर्श का हो या किसी के यहाँ लड़की का विवाह हो तब ही परोजन करते हैं इसमें सुनार से कान विंधवाते हैं। परोजन में भी भात नौता जाता है। षादी की तरह ही रतजगा व हल्दात करते हैं। विदाई में बहन बेटियों को साड़ी रुपये व मिठाई देते हैं। भाई-बहन दोनो बैठते हैं। आशाढ़, बैषाख, अगहन, माघ अौर फागुन में करते है या पहले बच्चे की शादी में कर देते है छठी पूजने में दो पीडे़ लेकर नई साड़ी बिछाकर देवी-देवता फैलाने हैं। कील, पटा, मुसल, खिचड़ी सवा किलो। 14 मटृठी मीठी, 14 मट्ठी फीकी, 14 पूडे़, 14 लड्डू देवता के आगे रखते हैं। चावल मीठे बनाकर 14 देवी बनाकर उस पर समान एक-एक सब चीजें रखते हैं। आटे का हलवा बनाकर 14 जगह रखते हैं। लड्डू अौर मठरी सवा-सवा किलो देवताअो के आगे रखते हैं। एक चन्दोवा की साड़ी लेकर चार हथलगी पकड़ती है, जिन औरतों के परोजन हो चुके हो वहीं औरतें चन्दोवा पकड़ेंगी।
दो थापे गेरू के लगाते हैं। देवर बंसी बजाता है उनको नेग देते हैं, ननदेऊ पंखा डुलाता है। काफी जगह भाई भी पंखा डुलाता है। उनको 1 डिब्बा मिठाई देते हैं। परोजन करते हैं पहले खारे पर माँ-बाप अौर सब बच्चे बैठते हैं खारे पर बैठे जब गोदी में सवा किलो लड्डू लेकर बैठे गोद गिरी का। माँ गोद में 21 आस लेकर बैठेगी। चने के आंजरे भरते हैं। कुछ मेवा भी देते है अौर मोतियो के भी भरते हैं। उसके बाद छठी पूजते हैं। आंजरे मां दोनो हाथो में नीला ब्लाउज लेकर पाँच जगह चने, पाँच जगह सुहाली, पाँच जगह मेवा, दो-दो जगह मोती के, चार जगह पैसों के ये 21 अंजारे पहले देवता के आगे चढ़ाने है। ये पांचों चीजें थोड़ी चन्दोवा की साड़ी में भी डालनी है। इसके बाद चारों हद लगी को चने व सुहाली एक-एक मुट्ठी दौरानी जेठानी को देती जाती है। छठी का समान पंडित को देते हैं। छठी पर कपड़े अौर परोजन का सारा सामान पीहर से आता है। चने, मीठी सुहाली, पांचो मेवा, मोती, खुले पैसे, बांसुरी, चांदी के दो छल्ले, 21 घुंघरू चांदी के चुंदड़ी पर या साड़ी पर लगाने के लिए। भाई जीजा व बच्चो के टीका करता है। दूहहेडी को दो थापे रखे जाते हैं। सवा-सवा किलो नेवज रखते हैं। बच्चो के कान पर हल्दी लगाते हैं, सारा सामान ननद को देते हैं। बुआ टीका करती है। खारे से उठ कर देवताअो को पूजते है।
बच्चे के बाल 1ए 3ए 5ए 7 वर्श की आयु में उतरवाते हैं। वैसे कोशिश पहले साल में ही करनी चाहिए। लड़के के बाल चाँदने में व लड़की के बाल अँधेरे पक्ष में कोई भी अच्छा वार देख कर गंगा जी व जमुना जी पर जा कर उतरवाते हैं या घर में। चार रोटी ले जाते हैं बाल उतरवाकर उस पर रखते हैं। फिर उसके साथ चार बूँदी के लड्डू रख कर जमना जी या गंगा जी जहाँ पर भी गए हों, प्रवाहित कर देते हैं। फिर रोली या हल्दी से बच्चे के सिर पर सतिया बुआ बनाती हैं। नया रूमाल या टोपी पहनाते हैं और फिर सब भोजन करते है। अपने परिवार में मिठाई बांटते हैं।