द्वार रूकाई
द्वार-रूकाई
विवाह के उपरान्त बारात तब लौटकर आती है तो एक बहुत सुन्दर परम्परा हमारे यहाँ प्रचलित है और वह है बन्ने की द्वार-रुकाई। इस रस्म को बन्ने की बहिनंे निभाती हैं। भाई इतनी सुन्दर दुल्हन लेकर आया है, आखिर इससे भी ज्यादा खुषी का अवसर और क्या होगा? बन्ने-बन्नी की सुन्दर जोड़ी को देखकर माँ बलिहारी हुए जा रही है, दादी मोतियों के थाल लुटा रही है और बहिनें मंगल कलश भर के द्वार रोककर खड़ी हैं।
भाई जब तक नेग (उपहार) नहीं देगा, तब तक अन्दर नहीं जाने देंगी। हर्शोल्लास के वातावरण का यह मधुर चित्रण आखिर किसे रस विभोर नहीं कर देगा।