रतिजगा सवेरे के गीत

मेंहदी

भारतीय परिवारों में मांगलिक अवसरों पर हथेलियों और पैरों में मेहँदी रचाई जाती है। मेहँदी के पत्ते देखने में तो हरे होते हैं लेकिन ज्योें-ज्यों सिल पर पीसे जाते हैं, लाल रंग छोड़ते जाते हैं। यही मेहँदी जब हाथों में लगती है तो अपने लाल रंग से हथेलियों को सजा देती है। लाल रंग यूं भी प्रेम और शृंगार का प्रतीक रंग है। मेहँदी के गीतों को विवाह के अवसर पर मांगलिक गीतों के रूप में गाया जाता है।
मेंहदी - 1
अम्बे की मेहँदी रचनी। गोरा की मेहँदी रचनी।
किन तेरे बाग लगाए और कौन सींचन जाए।।
म्हारै सीताराम बाग लगाए, बहू कमला सींचन जाए।। अम्बे की....
किसने पिसाए पात री, किसयाँ के रच गए हाथ री।
म्हारै अनूप पिसाए पात री, बहू सन्ध्या के रच गए हाथ री।।
अम्बे की मेहँदी रचनी।।
मेंहदी -2
मेरी मेहँदी के हरे-हरे पात, सांवरिया मेहँदी रंग भरी।।
गोरी किन तुझे मेहँदी मंगा दई और किसको मेहँदी का चाव।।
मेरे ससुरा जी ने मेहँदी मंगाइयाँ, मेरे जेठा जी ने मेहँदी मंगाइयाँ,
मेरी सासू जी को मेहँदी का चाव। मेरी जिठानी को मेहँदी का चाव।।
गोरी किन थारे हाथ रचाइयाँ, और कौन थारा निरखन हार।
मैं तो ओढ़ पहर पनियां चली, सखी हाथों में चूड़ा काँच का,
थारी खूब बनी तकदीर।। सांवरिया मेहँदी.......