सीठने

सावन के गीत

प्रकृति की गोद पला लोक जीवन तो प्रकृति के प्रतिपल परिवर्तित नूतन साज-शृंगार को न सिर्फ देखता है, महसूस करता है बल्कि उसके साथ हर क्षण तादातम्य ही रखता है। सावन का महीना वर्षा ऋतु के चरम उत्कर्ष का महीना है। इसलिए लोकगीतों में ऋतुओं के अनुसार उड़ते मनोभावों का बड़ा ही सुन्दर और सजीव वर्णन मिलता है।
सावन के गीत-1
सावन आया अम्मा मेरी रंग भरा जी,
ए जी कोई आई हैं हरियाली तीज ।।
घर-घर झूला झूलें कामिनी जी ।
बन बन मोर पपीहा बोलता जी,
एजी कोई गावत गीत मल्हार ।। सावन---
कोयल कूकत अम्बुआ की डार पें जी ।
बादल गरजे, चमके बिजली जी,
एजी कोई उठी है घटा घनघोर,
थर-थर हिवड़ा अम्मा मेरी काँपता जी ।। सावन--
पाँच सुपारी नारियल हाथ में जी
एजी कोई पंडित तो पूछन जाएॅं,
कितने दिनों में आवें लष्करीया जी ।।
पतरा तो लेकर पंडित देखता जी
ए जी कोई जितने पीपल के पात
उतने दिनों मे आवें लष्करीया जी ।
इतने में कुण्डा अम्माँ मोरी खड़कियाँ जी
एजी कोई घोड़ा तो हिनसाद्वार
टगटग महलों आए लष्करीया जी ।
घोड़ा तो बांधों बाँदी घुड़साल में जी
एजी कोई चाबुक रखियो संभाल ।। सावन---
पैर पखारूॅं उजले दूध में जी ।।
हिलमिल सखियाँ झूला झूलती जी
एजी कोई हँस हँस झोटे देय
सावन आया रंग-भरा जी ।।
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सावन के गीत-2
अरी बहना! छाई घटा घनघोर, सावन दिन आ गए ।
उमड़-घुमड़ घन गरजते ।
अरी बहना! ठण्डी-ठण्डी पड़त फुहार । सावन दिन--
बादल गरजे बिजली चमकती,
अरी बहना! बरसत मूसलधार ।। सावन दिन --
कोयल तो बोले हरियल डार पे,
अरी बहना! हंसा तो करत किलोल ।। सावन दिन --
वन में पपीहा पिऊ पिऊ रटै,
अरी बहना! गौरी तो गावे मल्हार ।। सावन दिन --
सखियां तो हिलमिल झूला झूलती,
अरी बहना! हमारे पिया परदेस ।। सावन दिन--
लिख-लिख पतियां मैं भेजती,
अजी राजा। सावन की आई बहार ।। सावन दिन--
हमरा तो आवन गोरी होय ना,
अजी गोरी। हम तो रहे मन मार ।। सावन दिन--
राजा। बुरी थारी चाकरी,
अजी राजा। जोबन के दिन चार ।। सावन दिन--
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भजन: सावन का महीना
सावन का महीना, झुलावे चित चोर, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
मनवा घबराये मोरा बहे पूरवैया, झूला डाला है नीचे कदम्ब की छैयां।
कारी अंधियारी घटा है घनघोर, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
सखियां करे क्या जाने हमको इशारा, मन्द मन्द बहे जल यमुना की धारा।
श्री राधेजी के आगे चले ना कोई जोर, धीरे झूलो राधे, पवन करे शोर।
मेघवा तो गरजे देखो बोले कोयल कारी, पाछवा में पायल बाजे नाचे बृज की नारी।
श्री राधे परती वारो हिमरवाकी और, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
सावन का महीना झूलावे चित चोर..........।।