बन्ने के गीत

बड़ा भात

बड़ा भात - 1
लटक रहा फुन्दा पाटों से,
बहन चली है बीर के, भावज ने जड़े किवाड़।
वहाँ से बहना चल पड़ी, रास्ते में मिल गया बीर।
बाई क्यों आई क्यों चल पड़ी, बाई दिख रही मुझे उदास।
लटक रहा फुन्दा.........
भैया तेरी भांजी/भांजा का ब्याह, मैं न्यौतन आई भात।
ना दीना मुझे बैठना, भाभी ने जड़े किवाड़।
लटक रहा फुन्दा.........
बाई किस दिन का तेरा मांडवा, और किस दिन का है ब्याह।
बाई जाओ अब घर आपने, मैं लेकर आऊं भात।
लटक रहा फुन्दा.........
राजा वहाँ से घर को चल पड़े, गोरी से पूछे बात।
गोरी घर में तीवल कितनी हैं? गोरी घर में बर्तन कितने हैं?
गोरी घर में रुपये कितने हैं? राजा घर में तिवल एक ना।
राजा घर में रुपैया एक ना, गोरी ने दिया जवाब।
लटक रहा फुन्दा.........
राजा जी उठकर चल पड़े, आए यारों के पास।
यारों ने पूछा यार से, तू क्यों हुआ उदास।
सुन मेरी भांजी/भांजे का ब्याह है, गोरी ने दिया जवाब।
लटक रहा फुन्दा.........
यारों ने चिट्ठी लिख देई, तेरे पीहर में ब्याह।
भैया ने माँगा भात, बहना दे दे सरवन माट।
राजा घर में तीवल बहुत हैं, राजा घर में बर्तन बहुत हैं।
राजा घर में रुपया बहुत है, दे आओ सरवन माट।
लटक रहा फुन्दा.........
गोरी ने अस्सी मोहर का झुमका, दही में दिया जमाए।
गोरी ने बच्चे समझा दिए, जाकर देखा ननसाल।
राजा जी घर से चल पड़े, सिर पर धर सरवन माट।
लटक रहा फुन्दा.........
गोरी कोठे चढ़कर देखती, राजा नन्दल के जाए।
राजा जी वापस आ गए, बच्चों से पूछी बात।
बेटा कैसी मामी-मौसियाँ, और कैसी थी ननसाल?
लटक रहा फुन्दा.........
अम्मा, ना मामी, ना मौसियाँ और ना देखी ननसाल।
अम्मा बुआ के भर आए भात।
लटक रहा फुन्दा.........
इस छलिये ने छल लिया, मेरा लिया कलेजा काढ़।
मेरे साड़ी जम्पर ना सालै, मेरे बर्तन तीवल ना सालै।
मेरे सालै दही का माट, मेरे कसकै दही का माट।
लटक रहा फुन्दा.........
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बड़ा भात - 2
काली-काली री साहिब काजलियाँ की रात, घटाएं छाईं साहिब घनघोर
उमड़-उमड़ ओ साहिब बरसेगा मेह, नन्ही बूंद सुहावनी जी।
बरसा-बरसा ओ साहिब मूसलाधार, जोड़ तलाई साहिब सब भरे।
जेठ ओ साहिब पहला मास, मीरघा पानी घालियो जी।
आसाढ़ ओ साहिब दूजा मास, हाली हलिया जोड़ियो जी।
सामण ओ साहिब तीजा मास, रिमझिम बरसै मैह घणा जी।
भादो ओ साहिब चैथा मास, खेवै ओ खडे़लै कड़की बिजली जी।
आसोज ओ साहिब पाँचवाँ मास, बेलड़ियाँ फल लागियो।
कार्तिक ओ साहिब छटा मास, लम्बा सीटा साहिब बाजरा जी।
मंगसीर ओ साहिब सातवाँ मास, मूंग मोठां की लावणी जी।
पौहओ साहिब आठमा मास, कोठी कुठला सब भरा जी।
माघ ओ साहिब पूरा मास, धण पीढ़लै साहिब पीलंगा जी।
थारै ओ साहिब सोलह बरस का पूत, थामनै बैठा ना सरै जी।
लाओ-लाओ ए गोरी कलम-दवात, चीट्ठी लिखदां तेरे प्यारे भातियाँ जी।
थारै औ साहिब नाई-ब्राह्मण सै न्योंद, मेरां नै नोंदण चालां आपां दो जनां जी।
थारां नै ओ साहिब मूंग चावल सै न्योंद, मेरां नै न्योदूं गुड़ भेलियाँ जी।
उठा-उठा ओ डोला, ढलती सी रात, दिन उगाया सुरंग सासरै जी।
आई-आई ओ साहिब बाप-दादा की सीम, सीम मै नीपजै मोठ बाजरा जी।
आये-आये ओ साहिब बाप दादा के बाग, कोयल षब्द सुनाइयो जी।
आई-आई ओ साहिब बाप दादा की पोल,
पोल तो ताऊ-चाचा सै भरी जी।
किसीया की बाई कहिये सै धी, किस साहेब की कुलबहू जी।
जनक की रे बीरा कहिये सै धी, दषरथ साहेब की कुलबहू जी।
किसीयां की ऐ बाई कहिये सै बहन, किसी साहेब की गोरड़ी जी।
राधेष्याम की रे बीरा कहिये सै बहन, रामचन्द्र साहिब की बीरा गोरड़ी जी।
खोलो रै बीरा अजड़ किवाड़ बाहर खड़ी तेरी बहनड़ी जी।
खुल गये ऐ बाई, अजड़ किवाड़, सांकल खुल गई बाई, सार की जी।
आई-आई रे बीरा राधा देई माँ, झट दे धाल्या बीरा बैठना जी।
रान्धा ए बाई जीन्दवारा भात, हरे मूंगा धोई दाल जी।
रे बीरा जाला परली खांड मंगाये, घी बरताया बीरा टोकना जी।
रे बीरा परोस्या सै थाल भाई रै बहन दोनों जीमस्या जी।
आओ-आओ ऐ बाई बैठो म्हारै पास, किस बिध आई, बाई पावणी जी।
थारै रे बीरा भांजा/भांजी का ब्याह, थामनै न्योतण मैं आई जी।
नाई नै रे बीरा बेगी बुला म्हारा, नगर बुलावा बीरा भेजियो जी।
बड़ी-बड़ी रे बीरा जाजम बीछा, भेली बधारूं बीरा चैंक मैं जी।
न्योंद-न्योंदा रे बीरा तख्तां बैठया बाबल अपना, राधा देई मेरी मायड़ जी।
न्योंदे-न्योंदे रे बीरा माँ के जाये बीर सुदा ए भतीजे मेरी भाभियां जी।
न्योंदे-न्योंदे रे बीरा ताऊ-चाचा के जोट, ताई ए चाची का बीरा झुमका जी।
न्योंदा-न्योंदा रे बीरा सब परिवार एक घर भूली मेरी बहन का जी।
न्योंदी-न्योंदी रे बीरा माँ की जायी बहन, सुदां ए बहनोई मेरे भानजे जी।
न्योंदा-न्योंदा रे बीरा सब परिवार, न्योंद चली घर आपनै।
एक बर बाई पाछी आइये, हमनै सीख बुध बाई देइओ जी।
सीख ओ बीरा देई ए नै जाए, सीख षरीरे उपजै जी।
लाइये रे बीरा ससुर मेरे की पाग, सासू का लाइये बीरा पीलिया जी।
नणदोईये नै रे बीरा षाल दुषालै, नणदल की लाइये बीरा साड़ियाँ जी।
देवर-जेठां के रे बीरा सूट सीमा, दौर-जिठाणियाँ के बीरा पोमचे जी।
बहन तेरी की रे बीरा चुनड़ी चिता, जीजा अपने का रे बीरा सूट सीमाइयो जी।
लाइयो-लाइयो रे बीरा तीवल पचास, साड़ी रे जम्फर बीरा डेढ़ सौ जी।
गल मेरे का रे बीरा हार घड़ा, लोटे ठणकदी बीरा गिन्नियाँ जी।
लाइये-लाइये रे बीरा बर्तन की जोट चरुएचढ़न्ता बीरा टोकणा जी।
इतना रे बीरा होए तो आइयो, ना घर रहियो बीरा आपनै जी।
ऐसे-ऐसे बाई बोल न बोल, हम बड़े परिवार तेरे भातियां ।
ये तो रे बीरा कहन सूनन की बात, हँस-हँस आइयो मेरे भातियां जी।
तू तो ऐ बाई घर अपने जाये, हम आवां तेरे भातियां जी।
होई रे बीरा भात भरण की बार, देवर मसला मारियांजी।
करै थी ऐ भावज बीर का गुमान कठै गये तेरे भातिये जी।
मन मैं रे बीरा उठी सै रीस, ले घड़ला सरोवर मैं गई जी।
सरवर की रै बीरा ऊँची-नीची पाल, एक चढंू दूजी उतरूँ जी।
छोटी नणदल रे बीरा राख्या सै मान, वे आवै भाभी तेरे भातिया जी।
झीणी-झीणी रे बीरा उठी सै धूल, मोटर चरकदी बीरा मैं सुनी जी।
बीरा मेरे की रै चमकी सै पाग, भाभीयाँ का चमक्या चुड़ला जी।
उतरे-उतरे रे बीरा ठण्डे बड़ की छांव, डेरा डाल्या बीरा बाग मैं जी।
तू कठै रे बीरा लाई सै बार, सबसे पहले बीरा न्योंदियो जी,
के थारै रे बीरा जन्मी सै धी, के बड़गोतन भाभी बीरा बरजियो जी।
अपने ए बाई ना जन्मी सै धी, ना बड़गोतन भाभी बरजियो।
अपने ए बाई जनम्या सै पूत, रलिये बधाई बाई हो रही।
भावज तेरी नै बाई लाई सै बार, अपने कंवर सिंगार दे।
माँ तेरी नै बाई लाई सै बार, तेरा भात सजावते, तेरा हार घड़ांवते।
रान्धु रे वीरा सुसर घर का भात, बाबुल घर का वीरा टोकना जी।
जीमैन बैठे मेरे देवर जेठ का पेट पन्सेरा, ढलक गया मेरा टोकना जी।
जीमनै बैठे मेरे माँ के जाये वीर, उजल गया मेरा टोकना जी।
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